सीमन्तोन्नयन संस्कार: गर्भस्थ शिशु और माता का आशीर्वाद
सीमन्तोन्नयन संस्कार, जिसे सीमन्त या सीमन्तोन्नयन भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में गर्भस्थ शिशु और माता के स्वास्थ्य एवं मंगल के लिए आयोजित एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह संस्कार गर्भावस्था के छठे या आठवें महीने में किया जाता है।
सीमन्तोन्नयन का अर्थ:
सीमन्त शब्द का अर्थ है "सीमांत" या "मांग का मध्य भाग"। इस संस्कार में गर्भवती महिला की मांग में सिंदूर भरकर सीमा का अंकन किया जाता है।
सीमन्तोन्नयन का महत्व:
गर्भस्थ शिशु की रक्षा: यह माना जाता है कि सीमन्तोन्नयन संस्कार गर्भस्थ शिशु को बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों से बचाता है।
गर्भवती महिला का स्वास्थ्य: इस संस्कार में किए जाने वाले मंत्र और अनुष्ठान गर्भवती महिला के स्वास्थ्य और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
सकारात्मक माहौल: सीमन्तोन्नयन संस्कार गर्भवती महिला और उसके परिवार में सकारात्मकता और खुशी का माहौल बनाता है।
पति-पत्नी के बीच प्रेम: यह संस्कार पति-पत्नी के बीच प्रेम और बंधन को मजबूत करता है।
सीमन्तोन्नयन की विधि:
सीमन्तोन्नयन संस्कार की विधि विभिन्न क्षेत्रों और परिवारों में थोड़ी भिन्न हो सकती है।
मुख्य अनुष्ठान:
गर्भवती महिला को स्नान करवाकर पवित्र किया जाता है।
यज्ञ मंडप सजाया जाता है और देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है।
गर्भवती महिला के सिर पर मौली, अक्षत, फल, फूल आदि अर्पित किए जाते हैं।
पति अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर भरता है।
ब्राह्मण मंत्रों का जाप करते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
अन्य रस्में:
कुछ क्षेत्रों में, गर्भवती महिला को खेल खेलने और मनोरंजन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
कुछ परिवारों में, इस अवसर पर दान-पुण्य भी किया जाता है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार का समय:
सीमन्तोन्नयन संस्कार गर्भावस्था के छठे या आठवें महीने में किया जाता है।
यह शुक्ल पक्ष के किसी भी शुभ दिन पर किया जा सकता है।
कुछ लोग बुधवार या शुक्रवार को इस संस्कार को करना शुभ मानते हैं।
सीमन्तोन्नयन संस्कार की सामग्री:
स्नान सामग्री
यज्ञ सामग्री (घी, आटा, दही, चावल, इत्यादि)
मौली, अक्षत, फल, फूल
सिंदूर
नए कपड़े
दान-दक्षिणा
सीमन्तोन्नयन संस्कार के लाभ:
गर्भस्थ शिशु का स्वस्थ विकास
गर्भवती महिला का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य
पति-पत्नी के बीच प्रेम और बंधन
सकारात्मक ऊर्जा और खुशी
निष्कर्ष:
सीमन्तोन्नयन संस्कार एक महत्वपूर्ण हिन्दू संस्कार है जो गर्भस्थ शिशु और माता के स्वास्थ्य एवं मंगल के लिए आयोजित किया जाता है। यह संस्कार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाभदायक है।
ध्यान दें:
यह जानकारी केवल सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले, आपको किसी पुजारी या धार्मिक विद्वान से सलाह लेनी चाहिए।
(आर्य समाज भुवनेश्वर)
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
आचार्य प्रशांत दाश (संयुक्त सचिव, आर्य समाज भुवनेश्वर)
मोबाइल : 9437032520
ईमेल: aryasamajctc@gmail.com
आर्य समाज के अन्य संस्कार :
गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्युपर्यंत जीव के मलों का शोधन, सफाई आदि कार्य विशिष्ट विधिक क्रियाओं व मंत्रों से करने को संस्कार कहा जाता है। हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों का बहुत महत्व है।
वेद, स्मृति और पुराणों में अनेकों संस्कार बताए गए है किंतु धर्मज्ञों के अनुसार उनमें से मुख्य सोलह संस्कारों में ही सारे संस्कार सिमट जाते हैं अत:
इन संस्कारों के नाम है-
(1)गर्भाधान संस्कार
(2)पुंसवन संस्कार
(3)सीमन्तोन्नयन संस्कार
(4)जातकर्म संस्कार
(5)नामकरण संस्कार
(6)निष्क्रमण संस्कार
(7)अन्नप्राशन संस्कार
(8)मुंडन संस्कार
(9)कर्णवेधन संस्कार
(10)विद्यारंभ संस्कार
(11)उपनयन संस्कार
(12)वेदारंभ संस्कार
(13)केशांत संस्कार
(14)सम्वर्तन संस्कार
(15)विवाह संस्कार
(16)अन्त्येष्टि संस्कार