नामकरण संस्कार: नवजात शिशु के नामकरण की हिन्दू परंपरा
हिंदू धर्म में नामकरण संस्कार एक पवित्र अनुष्ठान है, जो नवजात शिशु के नामकरण का प्रतीक है। यह जीवन के सोलह संस्कारों में से एक माना जाता है, जो व्यक्ति के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों को चिन्हित करते हैं।
यह प्राचीन परंपरा अपार सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है, जो बच्चे के नाम और उसके भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित करती है।
शब्द उत्पत्ति और अर्थ
"नामकरण" शब्द दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है:
नाम (नाम): जिसका अर्थ "नाम" होता है।
करण (करण): जिसका अर्थ "करना" या "बनाना" होता है।
इसलिए, नामकरण का शाब्दिक अर्थ "नामकरण" ही होता है।
संस्कार का महत्व
हिंदू परंपरा में नाम सिर्फ एक संबोधन नहीं है, बल्कि यह माना जाता है कि व्यक्ति के जीवन पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है। नामकरण संस्कार इसी महत्व को स्वीकार करता है और बच्चे को ऐसा नाम देने का प्रयास करता है जो उसकी विशिष्ट पहचान, शुभ गुणों और सार्थक जीवन की क्षमता के अनुरूप हो।
संस्कार का समय
परंपरागत रूप से, नामकरण संस्कार बच्चे के जन्म के 10वें दिन किया जाता है। यह शुभ तिथि हिंदू ज्योतिष के अनुसार चुनी जाती है, इस विश्वास के अनुरूप कि संख्या 10 पूर्णता और नई शुरुआत का प्रतिनिधित्व करती है। हालांकि, कुछ परिवार पहले महीने के भीतर या अपनी पसंद और सांस्कृतिक परंपराओं के अनुसार किसी भी समय समारोह करने का विकल्प चुन सकते हैं।
नामकरण संस्कार का आयोजन
नामकरण संस्कार आम तौर पर एक पुजारी या पंडित की उपस्थिति में किया जाता है। ये एक विद्वान हिंदू विद्वान होते हैं जो समारोह का मार्गदर्शन करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि यह पारंपरिक अनुष्ठानों का पालन करे।
समारोह में आम तौर पर निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
तैयारी: समारोह की शुरुआत अनुष्ठान स्थल की तैयारी से होती है, जिसे शुद्ध किया जाता है और पवित्र प्रतीकों और भेंटों से सजाया जाता है।
देवताओं का आह्वान: पुजारी विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेते हैं, जो बच्चे के लिए उनका मार्गदर्शन और रक्षा चाहते हैं।
मंत्रोच्चार: पुजारी पवित्र मंत्रों का जाप करते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उनमें दिव्य शक्ति होती है और वे सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान करते हैं।
यज्ञ (अग्निहोत्र): एक छोटा यज्ञ किया जाता है, जिसमें अग्नि देव को प्रार्थना और आहुतियाँ दी जाती हैं।
नामकरण: माता-पिता, पुजारी के मार्गदर्शन में, चुने हुए नाम को चार बार बच्चे के दाहिने कान में फुसफुसाते हैं, जो बच्चे द्वारा अपनी नई पहचान को स्वीकार करने और उसे अपनाने का प्रतीक है।
आशीर्वाद और शुभकामनाएं: पुजारी और परिवार के सदस्य बच्चे के स्वास्थ्य, खुशी और समृद्ध भविष्य के लिए आशीर्वाद और शुभकामनाएं देते हैं।
नाम का चुनाव
नामकरण संस्कार का एक महत्वपूर्ण पहलू बच्चे के लिए नाम का चयन होता है। नाम अक्सर विभिन्न कारकों के आधार पर चुना जाता है, जिनमें शामिल हैं:
राशि: बच्चे की राशि नाम चयन को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि कुछ नाम विशिष्ट राशियों के लिए शुभ माने जाते हैं।
अर्थपूर्ण नाम: माता-पिता सकारात्मक अर्थ या जुड़ाव वाले नाम चुन सकते हैं, जो उनके बच्चे के चरित्र और उपलब्धियों के
इस विधि पूजा के बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें:
आचार्य प्रशांत दाश (संयुक्त सचिव, आर्य समाज भुवनेश्वर)
मोबाइल : 9437032520
ईमेल: aryasamajctc@gmail.com